हमारे स्कूल में कोई प्रोग्राम हो, खासकर टूर का तो बच्चों को मुझे आनंदमोहन सर की सबसे पहले याद आती है। वे दूर से चीखते हुए आते हैं, “सर-सर, आप चलेंगे न हमारे साथ...चलेंगे? प्रॉमिस!” और फिर उसी तरह दौड़ते-भागते और हाँफते हुए वे प्रिंसिपल मैडम मनचंदानी के पास जाकर कहेंगे, “मैडमजी, मैडमजी, आनंद सर भी जा रहे हैं न हमारे साथ?” प्रिंसिपल मनचंदानी कुछ न कहकर मुसकराते हुए सिर हिला देती हैं। फिर मुझे बुलाकर थोड़ी खीजी हुई मुसकराहट के साथ कहती हैं, “पता नहीं आपने कौन सा जादू डाल दिया इन बच्चों पर। लीजिए, मि. आनंद, अब आप ही सँभालिए। इस बार का पिकनिक टूर भी आपके नाम!”