Pyaaz Raag

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प्याज़ राग व्यंग्य संदीप मील बस प्यारे, अपने तो वारे के न्यारे हो गये। पिछले दिनों हथेली में खाज चली और पांच बोरे प्याज़ खरीद मारे। फिर क्या था, अब तो नौकरी वोकरी छोड़कर प्याज बेचने का काम शुरू करना है। कितना दूरदर्शी हूं मैं भी, कम से कम केन्द्रीय कृषि मंत्री तो बनने लायक हूँ ही। सरकार अब प्याज़ खुद बेचने के चक्कर में है मगर हम भी कम पढ़े लिखे बनिये नहीं हैं। हम अब प्याज़ नहीं बेचेंगे, हमारा प्याज़ बाजार में आते ही बाजार भाव ही खराब हो जायेगा। हम प्याज़ पूरा तीन सौ रूपये किलो में