असम के गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से मात्र 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है देश का सबसे अधिक शक्तिशाली शक्तिपीट कामाख्या मंदिर है। यह मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है। यह सबसे पुराना शक्तिपीठ है। जब सती के पिता दक्ष ने भगवान शंकर को यज्ञ में अपमानित किया था। जिससे दुःखी होकर सती ने आत्म-दाह कर ली थी। तब भगवान शंकर ने सती कि मॄत-देह को उठा कर संहारक नृत्य किया। जिसमें सती के शरीर के 51 हिस्से अलग-अलग स्थान पर जाकर गिरे। जिसे ही 51 शक्ति पीठ माना जाता है। लोकमान्यता है कि सती का योनिभाग कामाख्या में गिरा। उसी स्थल पर कामाख्या मन्दिर का निर्माण हुआ। मंदिर के गर्भगृह मेंयोनि के आकार का एक कुंड है जिसमे से निरंतर जल निकलता रहता है। इसे योनिकुंड कहा जाता है। लाल कपडे व फूलो से योनिकुंड ढका रहता है। यहां केवल योनि की पूजा होती है, और तमाम तांत्रिक अघोरी और सिद्धी हासिल करने वाले हजारों सिद्धि इसी मंदिर में योनि सिद्दि के बूते ही तंत्र मंत्र की दीक्षा में पारंगत होते है।