मूक गवाही।

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"अम्मा मेरे घर पर भी गाय है, जिसको मैं खूब खिलाता हूँ और खूब सेवा भी करता हूँ।"वैसे इस बैज्जती की हक़दार मैं नहीं थी, मेरी मालकिन थी जो मुझे यहाँ से वहाँ इन गाड़ियो की रफ़्तार में लेकर घूम रही थी। जंगल पेड़-पौधे तो जैसे मैंने देखें ही नहीं कभी। देखूँगी भी कैसे? इस मुंबई शहर में इंसान के लिए जगह नहीं तो निर्जीव के लिए कहाँ स्थान यहाँ। मैं स्वयं को कामधेनु तो नहीं कहूँगी क्योंकि सुना है जिनके घर कामधेनु होती थी उन्हें अन्न धन की कमी नहीं थी। ख़ून के एक-एक कतरे से दूध बनाकर देती तो