“कोटि -कोटि के कवि” (व्यंग्य कथा) “कोई ऐ शाद पूछे या न पूछे इससे क्या मतलब, खुद अपनी कद्र करनी चाहिये साहब कमालों को”। किसी गुमनाम शायर की इन मशहूर पंक्तियों को हमारे हिंदी-उर्दू के कवियों और शायरों ने अपने दिल पे ले लिया है शायद । वैसे तो हिंदी –उर्दू वाले अपनी भाषाई शुध्दता पर गुमान करते हुए खुद को दूसरे से श्रेष्ठ बताते हैं और एक दूसरे पर तंज कसते रहते हैं।मगर जैसे ही कोई ऐसे मुशायरे या कवि सम्मेलन की घोषणा होती है तो दोनों प्रजातियों के लोग एक दूसरे के गिले -शिकवों को परे रखकर तुरंत