(भाग 6) जब छह बज गए, उसने अपना कंप्यूटर बंद किया और बैग उठा कर चल दी। स्कूटी निकाल स्टार्ट की और मुझे बैठने को कहा। और मैं आज्ञाकारी बालक की तरह उसके पीछे बैठ गया। रास्ते में लग रहा था कि वह मुझे स्कूल से वापस घर ले जा रही है। यह भी बड़ा अनोखा अनुभव था। मैं सोच रहा था कि जीवन के उत्तरार्ध में यह कैसा मोड़ आया कि एक नई जिंदगी शुरू हो गई। घर आकर उसने ताला खोल स्कूटी अंदर रखी और बिना कुछ कहे सुने वॉशरूम के अंदर चले गई। मैं सोफे पर आकर