उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार मित्रो बसंत आ गया, हर वर्ष आता है, जाता है | हम खड़े रह जाते हैं वहीं और वर्ष टुकड़ों-टुकड़ों में बीत जाता है | कुछ पुराना खो जाता है, नया जुड़ जाता है| यही है जीवन का सार जिसमें हम कुछ पुराने को छोड़, नए के साथ आगे बढ़ जाते हैं लेकिन पुराने बिछौनों को बिलकुल ही भूल पाना न तो संभव है और न ही शायद उचित ! कुछ स्मृतियाँ मन की भीतरी दीवार पर ऐसी चिपकी रहती हैं और अचानक ही किन्हीं कोमल क्षणों में ऐसे झाँकने लगती हैं जैसे व्यंग्य कर रही हों, हम