क्या खूब कहा है...

कोई ठहर नहीं जाता किसी के भी जाने से यहां कहां फुरसत है किसी को नया पाने से पहले मरते थे लोग दवा से महरूम हो कर आजकल वो लोग मर रहे हैं; दवा खाने से लोग बहुत बेरहम.. बे–अक्ल आजकल के अपनों की फ़िक्र नहीं; उन्हें लगाव जमाने से दूर जाकर चैन से नहीं रहने देते किसी को उन्हें तो मज़ा आता है पास रहकर सताने से हक़ीक़त दर्द भरी है तो कोई हाथ नहीं देता वर्ना जमाना ख्वाब भी चुरा लेता है सिराने से ताल्लुक था जब तक तो सर पे उठाया गया इंसानी नस्ल हैं कहा बाज