मैं तो ओढ चुनरिया 64 गाङी धीरे धीरे सरकती हुई प्लेटफार्म पर आ लगी । सहारनपुर स्टेशन आ गया था । उंघते हुए लोग चैतन्य हो गये । यात्रियों में पहले उतरने की होङ लग गई । उधर चढने वाली सवारियां अलग जल्दबाजी में थी । जैसे तैसे हम लोग नीचे उतरे । मन हो रहा था कि जल्दी से जल्दी माताजी और पिताजी के पास पहुँच जाऊँ । काश मैं कोई पंछी होती तो पंख फैला कर आकाश में उङ जाती और घर पहुँच जाती । पर ऐसा कैसे होता । मैं एक भले घर की