पथरीले कंटीले रास्ते 27 27 जेल में दिन हर रोज लगभग एक जैसा ही चढता है । अंधेरे को चीरती हुई सवेर की लौ दिखनी शुरू होती है , उसके साथ ही जेल की घंटी बज जाती है । संतरी बूटों की आवाज से ठक ठक करते हुए आते हैं और कोठरियाँ खोलते जाते हैं । कैदी जैसे इसी पल का इंतजार कर रहे होते हैं । जैसे ही कोठरी का ताला खुलता है , वे अपने नित्य कर्म के लिए बाहर आ जाते हैं । पूरा दिन सब कुछ सामान्य गति से चलता रहता