(०)करनें वाला राम और करानें वाला भी राम, मैं समुद्र के असीम जल की वों बूंद हूँ जो अपनें असीम और पूर्ण अर्थात् शून्य श्रोत से मिल गयी हैं अर्थात् मेरी अब कोई व्यक्तिगतता नहीं रह गयी हैं अतः अब जो हैं बस राम हैं, क्या आपकों करानें वाले पर और करनें वालें पर अर्थात कर्ता और माध्यम् यानी राम पर भरोसा हैं? तो आप भी वही कीजिये जो मैंने कर दिया हैं यानी अपने अस्तित्व की जड़ पर अपनें पूर्ण ध्यान अर्थात् जागरूकता रूपी जल की स्थिरता को अंजाम दीजियें, आपकी आंतरिक जगत की अर्थात् मानसिक जगत की और