मैं हूँ गुड़िया..... तुम्हारा डाकिया चाचा..

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समय निकलता गया।महीने ,दो महीने में जब कभी उस लड़की के लिए कोई डाक आती, डाकिया एक आवाज देता और जब तक वह लड़की दरवाजे तक न आती तब तक इत्मीनान से डाकिया दरवाजे पर खड़ा रहता।धीरे धीरे दिनों के बीच मेलजोल औऱ भावनात्मक लगाव बढ़ता गया।एक दिन उस लड़की ने बहुत ग़ौर से डाकिये को देखा तो उसने पाया कि डाकिये के पैर में जूते नहीं हैं।वह हमेशा नंगे पैर ही डाक देने आता था ।बरसात का मौसम आया।फ़िर एक दिन जब डाकिया डाक देकर चला गया, तब उस लड़की ने,जहां गीली मिट्टी में डाकिये के पाँव के निशान