अंगद - एक योद्धा। - 10

ठंड से जकड़ा हुआ बदन जो कांप रहा था, अब वह भयभीत भी था। उस ताप ने, जो अभी तक अंगद तक पहुंच भी ना था, उसकी आंखों में भय का एक साम्राज्य स्थापित कर दिया। भय का यह आभास अंगद के लिए बहुत नवीन था, सजल - भयभीत व केंद्रित दृष्टि से वह उस प्रकाशित ताप को देख रहा था। दहकती हुई प्रकाश ज्वाला अब अंगद से निपटने को ही थी। ठंड तो छू -  मंतर हो चुकी थी, अब तप बढ़ता जा रहा था और अंगद पसीने से तरबतर इस भयंकर स्थिति का सामना करने को अपने बिखरे