अपराध ही अपराध - भाग 10

  • 597
  • 318

(अध्याय 10)   मोबाइल फोन को जेब में रखते हुए धनंजयन ने कार्तिक को देखा। वह , उसके इतने तेज काम करने को देख कर भ्रमित हुई । “क्या बात है मैडम…. ऐसा देख रही हो?” “एकदम फर्राटे से एक-एक करके फैसला करते हो ।उसे भी बड़ी तीव्र गति से करते हो। हां क्या असली पुलिस उन लोगों को पकड़ लेगी?” कार्तिका ने पूछा। “जरूर पकड़ेगी। पुलिस वाले बिल्कुल वैसा ही भेष बना लें बिल्कुल सहन नहीं कर सकते।”धनंजयन ने बोला। “कहीं वे लोग बच गए तो?” कार्तिका ने पूछा। “हमें पॉजिटिव की सोचना है…. उससे भी बढ़कर यदि वे