हम खुद लगते हैं रेलवे ट्रैक और वक्त के साथ भागती हुई हमारी जिंदगी रेलगाड़ी।चलती तो रफ्तार से ही है मगर देखने वालों की नज़र में,खुद की नज़र से देखे तो जहां हम खड़े थे वहीं खुद को पाते हैं।आसान कहां है तकलीफों से लड़ कर हर रोज मुस्कुराना और बहते हुए आंसुओं से सवाल करना ।वो क्या है न आपको समझने वाले पल भर में आपको औरों जैसा बोल कर तकलीफ दे देते हैं, और मेरे जैसे मासूम दिल वाले लोग खुद को गलत समझ रोने लग जाते हैं।पता है उस इंसान के लिए मेरे आंसू कीमती नहीं है