-नीलम कुलश्रेष्ठ [ साहित्यिक चेतावनीः यह संस्मरणनुमा कथा कोई रोमांटिक कहानी नहीं है ] ‘धी --रे चलें, आप पर्वतों की गोद में हैं’-चलती टैक्सी की खिड़की से मैंने सड़क के बांई तरफ़ लगे बॉर्डर रोड ऑर्गनाइज़ेशन-‘स्वस्तिक’ के पीले बोर्ड पर सरसरी नज़र डाली। पर्वतों की गोद में चलना तब महसूस होता है जब आप पर्वत पर ऊंचे चढ़ आए हों । सामने वाले पहाड़ की गोल गोल घूमती सड़क पर कार व टैक्सी घूम रही हो-कभी छिपती, कभी दिखाई देती। यों तो पर्वतो की गोद लंबे देवदारों के भीगे पत्तों, बीच बीच में दिखाई देते माचिस की डिब्बी जैसे मकानों