अति वाचालता का दुष्परिणाम एक राजा बहुत अधिक बोलता था। उसका मन्त्री विद्वान् और हितचिन्तक था। इसलिये सोचता रहता था कि राजा को कैसे इस दोष से मुक्त करूँ और वह ज्ञान दूँ, जो कि मनुष्य के हृदय में बहुत गहराई से उतरकर उसके स्वभाव का अंग बन जाता है। मन्त्री हमेशा राजा के हित की सोचता रहता था और उचित अवसर की तलाश में था कि राजा को अपने इस दोष का आभास हो और उसके द्वारा होनेवाली हानि को समझकर उसमें से निकल जायँ। एक दिन की बात है, राजा मन्त्री के साथ उद्यान में घूमते हुए एक