"मेरे बचपन के मजे अब खत्म होने वाले थे चलो अब हॉस्टल तीसरी क्लास मे था मेरी किस्मत मे हॉस्टल जाना भगवान ने लिख दिया और वो भी 200 + किलोमीटर दूर गांधीनगर मे अब इतनी दूर और पहली बार हॉस्टल मे जाना कोई छोटी बात नही थी। इतनी दूर ट्रैवल करके जाना मतलब गाडी मे बैठे बैठे के हालात खराब हो जाती थी लगातार 4 -5 घंटे तक का सफर होता था। यहाँ पे मेरा बचपन बहुत हद तक खत्म होने वाला था। यहाँ से मेरे जिवन घड़तर की शुरुवात होने वाली थी। इस कहानी का शीर्षक है एक