कोहराम

सुबह हुई, सूरज उग आया ।रोते हुए उसने रात को बिताया ।आंखों के सामने उसके,अंधेरा अब था छाया ।क्या करे वो उसको कुछ,समझ नहीं आ रहा था ।परिवार ही उसका उसको,समझ नहीं पा रहा था ।आंसू बहते आखों से वो,शून्य में थी ताक रही ।जो भी हुआ था साथ में उसके,सब कुछ थी सोच रही ।अभी तो बात थी कल की ही,जब वो स्कूल थी जाती ।हंसती खेलती थी साथ सबके,खुल कर थी मुस्कराती ।सपने उसके थे आसमां से ऊंचे,कि पढ़ लिख कुछ बड़ा करेगी ।दुनिया में एक पहचान बना कर,मां बाप का नाम रौशन करेगी ।सपनों को अपने पाने