महात्मा और गांधी रात सपने में गांधी जी ने दर्शन दिए । सच पूछो तो मैंने पहचाना नहीं ,न तो चश्मा..,न लाठी.., धोती भी फटी हुई,साथ में तीन बन्दर भी नहीं थे , चरखा भी नहीं ,बताओ भला कैसे पहचानता । बस कमर झुकी हुई थी ।मेरे पास आकर बैठ गए। मुंह से अंतिम बार बोले गए शब्द ‘हे राम’... ही निकल रहे थे ।बस इन शब्दों से मैंने अनुमान लगाया की गांधी जी ही हैं । बड़े दुखी नजर आ रहे थे ,कह रहे थे, ;’इन देशवासियों से मुझे ये आशा नहीं थी, मुझे महात्मा बना दिया, मुझे राष्ट्रपिता