उजाले की ओर –संस्मरण

================== स्नेहिल सुप्रभात पाठक मित्रों हर समय किसी से नाराज़ रहने में आखिर क्या मिल जाएगा? जीवन के जिन रास्तों पर चलना है, जो खुरदुरे परिणाम पाने हैं, उनमें तो हम कोई भी रोक रोकथाम नहीं लगा सकते | जो मार्ग हमारे सामने आते हैं उन पर तो हमें चलना ही पड़ता है | अब रोकर चलें या हँसकर ! सारी बातों का उत्तर एक ही है कि हम न तो हर समय अप्रसन्न रह सकते और न ही रो सकते | सवाल यह भी बहुत कठिन है कि आखिर ऐसा करने से हमें मिल क्या जाएगा ? कोई साथ