कोमल की डायरी - 4 - तुझे मृत्यु को देता हूँ

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चार        तुझे मृत्यु को देता हूँ                             बुधवार, अठारह जनवरी, 2006कल बहादुर के मुकदमें की पेशी थी। वह सबेरे ही आ गया। मुझे भी कचहरी ले जाना चाहता था। इसीलिए मैं सुमित और जेन के साथ कल न जा सका। वे कल श्रवण पाकर, स्वामी नारायण छपिया और मखोड़ा देखना चाहते थे। मैंने कुछ प्रारम्भिक बातें बताकर उन्हें भेज दिया। बहादुर को कभी-कभी विपक्षियों ने धमकाने की कोशिश की है। इसीलिए उसकी इच्छानुसार कचहरी जाना मुझे आवश्यक लगा। छः घण्टे इधर उधर चहल कदमी करते