मैं तो ओढ चुनरिया - 62

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  मैं तो ओढ चुनरिया    62   पूरी रात मैं आज के घटनाक्रम पर विचार करती रही । बिना किसी कसूर के मिली गालियां । फिर घड़ी मिल जाने पर खुशी । हमारे घर तो छोटी से छोटी चीज भी किसी के लिए आती तो वह दिन सबके लिए त्योहार का दिन होता । प्रसाद बनता । ठाकुर जी को भोग लगता । सब लोग मीठा खाते और खुश होते । पर यहाँ तो हर बात अलग थी । धिन निकलते ही मैंने अटैची में मैंने सिले अनसिले बहुत सारे कपड़े रख लिए । सोचा मायके में बैठ कर