मैं तो ओढ चुनरिया - 61

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  मैं तो ओढ चुनरिया    61 ग्यारह बजे से दोपहर हुई फिर शाम हो गई । पूरा दिन इंतजार करते करते बीत गया । धीरे धीरे अंधेरा छाने लगा । रात उतर आई पर अभी तक जरनैल का कोई पता न था । किससे पूछूं । कौन बताएगा । मन बुरी तरह से घबरा रहा था । रात की रोटी खाई जाने लगी । यहाँ इस घर में सात बजते बजते रोटी निपटा ली जाती है । सब रोटी खा कर दूध का गिलास पी पी कर सोने चले गये ।हमारे घर में पिताजी नौ बजे तक क्लीनिक पर