अनन्या अब भी हवेली में ही थी। वह खुश थी और अपने स्वार्थ की माला में सफलता के मोती पिरो रही थी। आज एक मोती और उसमें जुड़ गया था। वह सोच रही थी चलो एक मुसीबत और टल गई। यह तो सदमे से ही मर गए। उसे ज़्यादा कुछ करना ही नहीं पड़ा। अब तो केवल दिग्विजय की अम्मा ही बाक़ी है। उससे पीछा कैसे छुड़ाऊँ …? खैर वह अकेली अब क्या ही कर पाएगी। अनन्या बेफिक्र थी लेकिन वीर को हमेशा उसकी चिंता लगी रहती थी। बार-बार उसका मन अनन्या को फ़ोन करने का होता रहता था। कई