मैं तो ओढ चुनरिया - 60

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मैं तो ओढ चुनरिया    60 कमरे में आकर मैंने बाल संवारे । मांग में सिंदूर लगाया । माथे पर सिंदूर की ही बिंदी लगाई और सिर ढक कर कुर्सी पर बैठ गई कि अब कोई चाय नाश्ते के लिए पूछने आएगा लेकिन आधे घंटे तक कोई नहीं आया । तब तक दिन निकल आया था ।दिन निकलने के साथ साथ पूरे घर में कानाफूसी शुरु हो गई । “ कैसी बेसहूरी बहु है । पहले ही दिन पहने हुए कपङे उतार कर गुसलखाने में फेंक दिए । कोई और धोने आएगा क्या ?” पूरे घर के लोग मुँह ढक