'और मास्टर जी, आजकल फिर यहीं...?'चंदन ने अपनी लहराती साइकल की तेज़ रफ़्तार को जान- बूझकर ब्रेक लगाया और घंटी बजाकर मास्टर जी को जगाते हुए पूछा।जून की तपती दुपहरी में मास्टर जी आम के पेड़ों की छांव में सो रहे थे। अचानक बजी घंटी से वे हड़बड़ाकर उठ बैठे। चंदन की शरारत को भांपते हुए बोले, 'दूर, दूर, दूर रहो जी।'चंदन हंसते हुए बोला, 'इधर से जा रहे थे, सोचे आपका हालचाल...?'बात पूरी भी नहीं हुई थी कि मास्टर जी ने उसे डांटते हुए कहा, 'अच्छा... अच्छा, हमें सब पता है। चलो निकलो यहां से।'मनचाही इच्छा पूरी न हो