सत्तर - तीस

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“सत्तर -तीस”बाढ़ का पानी उतरते ही बाढ़ राहत सामग्री बंटने की बारी आ गयी। ग्राम सभा बड़ी थी जिसमें पांच मजरे थे , तीन मजरों में बाढ़ का पानी इतना ज्यादा आया था कि वाही -तबाही जैसे हालात हो गए थे।उन मजरों के घरों की छत तक डूबने की कगार पर थी , हँसता -बसता गांव का वो हिस्सा किसी बियाबान की तरह उजाड़ और तबाह नजर आता था बाढ़ के कहर से।यूँ तो बाढ़ से राब्ता नदी तट पर बसे इस गाँव का हर साल होता था, मगर इस बार प्रलय थी । गांव के बाकी दो मजरों में