अमर शहादत शाम का समय था। पार्क में चारों ओर सन्नाटा फैला हुआ था। यह पार्क शहर के बाहर एक सुनसान जगह पर था, इसलिए यहाँ इक्का-दुक्का लोग ही घूमने आते थे। बाबा सुखदेव सिंह पार्क में बनी एक बेंच पर बैठे विचारों में खोए हुए थे। बाबाजी को काबुल में रहते हुए लगभग एक महीना बीत चुका था । श्रद्धालुओं की सेवा भक्ति में कोई कमी नहीं आयी थी। रोज़ बाबाजी को नये-नये उपहार मिलते, चढ़ावा चढ़ता, परन्तु बाबाजी जिस काम के लिए आए थे, उसके पूरे होने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे। इसलिए उनका