रावी की लहरें - भाग 20

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भाग्य परिवर्तन मैं एक बैठक में भाग लेने महानगर आया हूँ। रेल से उतर कर मैं प्लेटफार्म पर आ गया । चाय पीने की तलब लग रही है, इसलिए मैं होटल की ओर चल देता हूँ।  मैं होटल में जाकर बैठ गया। नौकर ने चाय का कप लाकर मेरी मेज पर रख दिया। अभी मैंने चाय का पहला ही घूंट भरा था कि होटल का मालिक मेरे पास आकर खड़ा हो गया। उसने हाथ जोड़कर मुझसे नमस्ते की ।  मैंने हैरानी से उसकी ओर देखा ।  उसने पूछा, “आपने पहचाना नहीं साहब?"  अब मैंने ध्यान से उसकी ओर देखा ।