मैदान - फिल्म रिव्यू

  • 1.8k
  • 591

 रोंगटे खड़े हो गए थे , गला सूख गया था, आंखे नम थी और आंसू खुशी से बेचैन थे बाहर आने के लिए , वो तो भला हो पलकों का जिन्होंने उन्हें रोक के रखा । मैं चुप भी था और एक बार चिल्लाना भी चाह रहा था कि  ' हम जीत गए ' ।कुछ यही हाल था मेरा जब मैं ये फिल्म खत्म किया।मैदान 10 अप्रैल, 2024  को थियेटर में लगी थी, किसी कारणवश नहीं देख पाया था तो अब देखा और तब ना देखने का मलाल ताउम्र रहेगा । क्योंकि अगर तब देखता तो जरूर चिल्लाता और शायद रो