सावन का फोड़ - 22

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जोहरा जल्दी से जल्दी कर्मा तक सुभाषिनी को पहुँचाकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहती थी वह भागती ही जा रही थी . कोशिकीपुर में अद्याप्रसाद के घर मातम का माहौल था गांव वाले अपने अपने तरह से इस घटना पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे अद्याप्रसाद और शामली को तो जैसे सांप सूंघ गया हो ऐसा वज्रपात हुआ हो जिससे उबरना ही मुश्किल हो तभी गेहूल नशे में धुत अद्याप्रसाद के दरवाजे पहुंचा और अद्याप्रसाद शामली रजवंत मुन्नका को रोते विलखते देख बोला हम त परसो ही बतवले रहनी कि जाऊँन औरत के तोहन लोगन घरे रखले हव ऊ ससुरी