सावन का फोड़ - 19

  • 825
  • 273

कर्मा दीदी पर मेरा कोई बोझ नही था उन्हें मेरी बदनामी और इज़्ज़त का डर था वह मुझे कुछ नही कहती लेकिन मन ही मन घुटती रहती एक दिन उनके अंदर कि चिंगारी बारूद बनकर निकली गुस्से में बोली जोहरा अपने कोख में पल रहे मुस्तकीम का पाप लेकर कही जाओ डूब मरो लेकिन हमारा पिंड अब छोड़ दो ।जोहरा अपनी बीती बताती जा रही थी शामली सुनती कभी उसकी आंखें डबडबा जाती जोहरा को ढांढस देती कहती अब घबड़ाओ नही ।जोहरा बोली दीदी मैं कर्मा दीदी का घर छोड़कर निकल तो गई लेकिन कहाँ जाँऊ समझ मे ही नही