उन्हीं रास्तों से गुज़रते हुए - भाग 31 (अंतिम भाग)

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भाग 31 सचमुच अभय ने तथागत् के शब्दों के सही अर्थों को समझा है। मैं समझ नही पा रही थी कि अभय की सोच में, उसके व्यक्तित्व में इतनी विशिष्टतायें हैं तो विवाह के प्रारम्भिक कुछ वर्षों की अवधि तक उसे क्या हो गया था। क्यों वह कभी-कभी मेरे प्रति संवेदनहीन हो उठता था? मेरे साथ इस प्रकार का व्यवहार करने लगता था जैसे कि मुझसे कभी प्रेम न किया हो। मैं उसकी पहले वाली नीरू न रही। जो भी हो समय अब आगे बढ़ चुका है। विगत् दिनों को याद कर मैं हृदय के जख़्मों को हरा करना नही