युवा किंतु मजबूर - पार्ट 1

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{ पार्ट -1} आषाढ़ का महिना था, हल्की ठंडी हवा गुनगुना रही थी और धीमे धीमे भोर की खुशबू फैल रही थी और प्रकृति ये संदेश दे रही थी की कुछ ही क्षणों में सूर्योदय होने को है ... राकेश वही रोज की तरह मंदिर के पीछे वाले मैदान में लेटा हुआ था..मच्छरदानी के अभाव में अपने घुटने और हाथो को कस के बांधे हुए छोटे बच्चे की भांति सो रहा था ,,मच्छर बार बार कानो में आरती कर रहे थे, वह हर बार जोर से सिर को भनभनाता,लेकिन इस बार मानो मच्छरों ने संगीत कार्यक्रम आयोजन कर लिया हो