धरती-आकाश

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स्वरचित, मौलिक, मानवेतर लघुकथा=धरती-आकाशधरती भूक्का फाड़कर रो रही थी, आकाश ने जब रोने का स्वर सुना तो उससे रहा नहीं गया। धरती की ओर देखा।धरती तुम क्यों रो रही हो,.... क्या हुआ तुमको? आकाश ने बोला।धरती.... मेरे बच्चे भूखे प्यासे हैं, मेरी सीना छलनी-छलनी कर दिया हर जगह बोरिंग की है,....पर मैं क्या करूं! मैं तो सूखी पड़ी हूँ और ना ही मेरे पास अनाज है। आप कृपा करके वर्षा वृष्टि कर दो,.... (रोते-रोते) अपने बच्चों को मैं भूके प्यास से तड़पकर मरते नहीं देख सकती हूँ।धरती ने आकाश से अनुरोध किया।आकाश (क्रोध में)--- "यह मानव ने,.. ई- वेस्ट को