सपने बुनते हुए - 3

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42. तुम्हीं बताओ मेरी आत्मा थी मनस्वी केवल बिटिया नहीं थी। आत्मा बिना क्या कोई जीवित रह पाता है? तुम कहते हो मैंने तिल-तिल आत्मघात किया मुझे जीना चाहिए था अपने लिए, पति के लिए, समाज के लिए यही सदा होता है एक औसत प्राणी को मिल ही जाता है पाथेय कहते हो तुम कि मैं बनाए न रख सकी अपनी जिजीविषा को। औसत का दर्शन तुम्हारा यह लुभा न सका मुझे।शरीर का जीना क्या संभव है किसी दर्शन के सहारे बिना आत्मा के? तुम कहते हो जीने के रास्ते बहुत थे पर ये सारे रास्ते संभव हैं आत्मा का