सपने बुनते हुए - 2

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14. दिनकर उगाना हैगह्वर के भीतर का घना अंधियारा और जंगल की हूक किसने उगाई यहाँ? तुमने कहा था- हम दिनकर उगा रहे वंचक हो कह दूँ क्या? तुम्हारे इन तंत्रों के एक एक तार जो बिखरे पड़े हैं कैसे सह पाएँगे आग, एक युग की जीवन की?किसी देश की सम्पूर्ण पीढ़ी को तीन बन्दर समझना भ्रम है उन्होंने अभी तक तुम्हें ललकारा नहीं यही क्या कम है? यह जानकर कि मेरे ओंठ सिले हैं तुम्हें सुकून मिल सकता है किन्तु सिले हुए ओंठों की आग को दिनकर उगाना है। तुम्हारे द्वारा प्रसारित अँधियारे को हज़म कर जाना है। 15.