गुलकंद - पार्ट 3

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गुलकंद - 3 - काकाजी के व्यक्तित्व ने उसे सदैव प्रभावित किया था! हँसते-मुस्कुराते, मीठी बातें करते काकाजी के सामने उसे अपने पिता का स्वभाव कभी अच्छा ही नहीं लगा। पर प्रभावित होने के बावजूद वह काकाजी को बस थोड़ा दूर-दूर से ही देखते रहने को मजबूर था कि उनके व्यवहार की पता नहीं कौन सी एक शुष्कता उसे उनके करीब जाने से, उनके सामने कुछ बोल पाने से रोक दिया करती थी। बाद में जब से नये मास्टर जी गाँव में आए, वह उनका ही मुरीद बन गया। वैसे उसके गाँव में उस समय पढ़ाई-लिखाई का कोई माहौल नहीं