साँसत में काँटे - भाग 4 (अंतिम भाग)

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भाग -4 उसके अब्बू कुछ देर सोचने के बाद बोले, “हमारी यही तो ग़लती, ग़लतफ़हमी है कि, हम जिन दहशतगर्दों को अपना फ़रिश्ता समझते रहे, वो एक दरिंदे से ज़्यादा और कुछ भी नहीं हैं, जो अपनी दरिंदगी से मज़हब को बदनाम कर रहे हैं, और हम-लोग आँख मूँद कर उनको मदद करते आ रहे थे।  “जिन्हें हम काफ़िर समझ रहे हैं, उनके बीच जाने से डर रहे हैं, मुझे मालूम है कि हम उनके बीच इन दरिंदों से ज़्यादा सुरक्षित रहेंगे। हमें वह कुछ भी नहीं होने देंगे। तुम जम्मू, दिल्ली की बात छोड़ो पूरे मुल्क में हर मुस्लिम