इन्हीं ख्यालों में खोए हुए उत्कर्ष की तंद्रा तब टूटी जब ड्राइवर ने कार का दरवाजा खोलकर कहा "छोटे साहब हम घर पहुँच गये हैं।" "हम्म हाँ।" उत्कर्ष ने अपना सर झटकते हुए कहा और प्रणय के कंधे को झकझोरकर उसे जगाया। "नहीं चाचू, मुझे मत मारिये, मेरी कोई गलती नहीं है।" बड़बड़ाते हुए प्रणय ने ऑंखें खोलीं। "अबे यार उफ़्फ़ सपने में भी डरता है तू? हद है। चल बाहर निकल।" उत्कर्ष ने प्रणय की बड़बड़ाहट सुनकर झल्लाते हुए कहा। "ओहह शुक्र है भगवान का की वो सिर्फ एक सपना था।" प्रणय ने गहरी साँस ली और गाड़ी से