मैं तो ओढ चुनरिया - 57

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मैं तो ओढ चुनरिया    57   खैर सासु जी बिना कुछ कहे भीतर चली गई और उनके पीछे वह जेठानी भी तो मैंने सुख की सांस ली । शुक्र है , गहरा कर आए बादल बिना बरसे लौट गये वरना काम तो हमने गरजदार बौछारों और बिजली गिरने का किया था जिसमें डूबना तय था । जब से होश संभाली थी तब से मौहल्ले और रिश्तेदारी की कई दुल्हिनों का गृहप्रवेश देखा था , हर जगह दूल्हा दुल्हन आकर द्वार पर प्रतीक्षा करते तब सास जेठानियां थाल कलश लिए आते । सौ तरह के रीति रिवाज निभाए जाते ।