वाजिद हुसैन सिद्दीक़ी की कहानी कार तीव्र गति से समुंद्र के साहिल की सड़क पर दौड़ती हुई जा रही थी मंजिलों पर मंजिलें तय करती। रात हो चुकी थी। समुंद्र की उठती हुई लहरों की बहुत ही महीन फुआरें कार के शीशो पर कभी-कभी पौड़ती और सामने धुंध सी छा जाती। लेकिन इस धुंध से कार की गति में कोई अंतर न आता। न गति कम होती और न दिल का दर्द कम हुआ। वह दर्द जो अब उसके रग-रग में में फैल चुका था, विष बनकर खून में उतर चुका था। ऐसा लगता था कि उसकी शख्सियत अपने सभी