श्रीकीताजी महाराज का जन्म जंगल में आखेट करने वाली जाति में हुआ था, परंतु पूर्वजन्म के संस्कार वश आपकी चित्तवृत्ति अनिमेषरूप से भगवत्स्वरूप में लगी रहती थी। आप सर्वदा भगवान् श्रीराम की कीर्ति का गान किया करते थे। साथ ही आपकी सन्त सेवा में बड़ी प्रीति थी, यहाँ तक कि आप सन्त सेवा के लिये भगवद्भक्ति से विमुख जनों को जंगल में लूट भी लिया करते थे और उससे सन्त सेवा करते थे। एक बार की बात है, आपके यहाँ एक सन्तमण्डली आ गयी, परंतु आपके पास धन की कोई स्थायी व्यवस्था तो थी नहीं, अतः आपने अपनी एक युवती