फागुन के मौसम - भाग 15

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वैदेही उसी समय उठी और शारदा जी के पास जाकर उसने उन्हें अपराजिता निकेतन का एडवरटाइजमेंट दिखाते हुए कहा, "माँ देखिये, मेरा राघव मुझे नहीं भूला है। उसने अपनी कंपनी का नाम भी मेरे नाम पर रखा है।" शारदा जी ने भी हैरत से इस एडवरटाइजेंट को पढ़ा और फिर उन्होंने वैदेही की तरफ देखा जिसका चेहरा देखकर ऐसा लग रहा था मानों उसका वश चले तो वो अभी उड़ते हुए बनारस पहुँच जायेगी। "तो अब तुम क्या चाहती हो वैदेही?" शारदा जी ने गंभीरता से पूछा तो वैदेही ने कहा, "क्या अब भी मुझे बोलकर बताना पड़ेगा माँ?" "हम्म...