उन्हीं रास्तों से गुज़रते हुए - भाग 19

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भाग 19 आज लगभग एक माह के पश्चात् अनिमा कार्यालय में मुझे मिली । " तुम इतने लम्बे अवकाश पर थी। क्या हुआ सब ठीक तो है? " मैंने अनिमा से पूछा। " कई दिन-और रातें उसकी यादों में रो-रो कर व्यतीत करने के पश्चात् एक दिन मुझमें वो साहस आ ही गया, कि मैं इन परिस्थितियों से मुठभेड़ करने में स्वंय को सक्षम पा रही थी।.........इतने दिन लग गये मुझे इन सबसे बाहर निकलने में । अन्ततः अब सब कुछ ठीक है। " अनिमा के चेहरे पर दुःख की हल्की-सी परछाँई तो थी किन्तु उससे गहरी मुस्कराहट थी। "