यूँ तो अभी कृष्ण-पक्ष की समाप्ति में दो दिन बचे हुए थे और चंद्रमा अपनी बहुत ही हल्की छाया में तारों के साथ धीमी-धीमी रोशनी फैलाते हुए आसमान में चहलकदमी कर रहा था लेकिन फिर भी अपने बिस्तर पर लेटे हुए खिड़की से इस दृश्य को निहार रही पायल अपने हृदय में अमावस्या के घोर अँधकार को महसूस करते हुए बहुत बेचैनी से करवट बदल रही थी। पायल की इकलौती बेटी अमारा जो अभी-अभी दस वर्ष की हुई थी, कल अपने पापा के साथ अपने नए विद्यालय जाने वाली थी। अमारा, जो पढ़ने में बहुत होशियार थी उसका चयन सैनिक