सन्त-सेवा परायणा श्रीशोभा जी अपने देवर-देवरानी के साथ रहती हुई निरन्तर भजन-साधना में लगी रहती थीं। इनका देवर तो इनकी भक्ति-भावना से सन्तुष्ट था, परंतु देवरानी कुढ़ा करती थी। एक बार देवर ने एक जोड़ा सोने का कंकण बनवाया और शोभाजी को ही रखने के लिये देकर स्वयं परदेश चला गया। इनकी देवरानी को भला यह कब सहन होने लगा। वह शोभा को तो कुछ नहीं कह सकी, परंतु अवसर पाकर शोभा के पास रखा हुआ कंकण उसने चुरा लिया और पृथ्वी में गाड़ दिया। श्रीशोभा जी तो सदा सन्त-सेवा और सत्संग में पगी रहती थीं, कंकण की ओर से