नर नारायण--ब्रह्मांड के दो प्रमुख अवयव है जो परब्रम्ह परमात्मा कि कल्पना रचना कि वास्तविकता है प्रथम प्रकृति है जो ब्रह्मांड का आधार है जिसमे पंच तत्व महाभूतों का सत्यार्थ परिलक्षित है जिसका प्रवाह पवन,पावक ,शून्य (आकाश) स्थूल (पृथ्वी) जल प्रावाह का सत्य है इन्ही के आधार पर प्राण का अस्तित्व निर्धारित होता है ।प्राण को एक निश्चित काया प्राप्त होती है जो उसके करमार्जित परिणाम का श्रेष्ठ पुरस्कार होता है अर्थात नदियां झरना झील पहाड़ पृथ्वी बृक्ष लता गुल्म प्रकृति के प्राणयुक्त निःशब्द स्वर अवयव है तो सृष्टि के करोड़ो जीव प्राण प्राणी कि स्वर शब्द युक्त ।प्रकृति और