कर्म से तपोवन तक - भाग 12 (अंतिम भाग)

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अध्याय 12 नदी की उर्मियाँ सूर्यास्त के सुनहले रंग से भर उठी थी। माधवी गगरी उठाकर अपने आश्रम की ओर चलने लगी। कैसी सम्मोहित अवस्था हो गई थी जब नदी किनारे बैठे-बैठे उसने अतीत को पुनः जी लिया था।  अब उसने जीवन की उस अवस्था को प्राप्त कर लिया है जब उसे अतीत चुभता नहीं बल्कि गर्व से भर देता है कि किस तरह उसने पिताश्री राजा ययाति की दानशीलता को कलंकित नहीं होने दिया किस तरह गालव की गुरु दक्षिणा जुटाने की वचनबद्धता निभाई और किस तरह गालव को उसके संस्कारों से गिरने नहीं दिया। उसे गर्व है अपने